Monday, September 7, 2015

" यशाचे फॉर्मुले"

१) तुमचे ध्येय निश्चित करा. मला काय करायचयं, काय व्हायचयं, कुठे पोहचायचय, काय मिळवायचंय हे आज, आत्ता, ताबडतोब ठरवा...
२) त्या दृष्टीने प्रयत्न करा, यासाठी कोणाची मदत होईल, कोण साथ देईल, कोणती पुस्तके वाचावी लागतील, कोणाच सहकार्य घ्यावे लागेल या अनेक गोष्टींची यादी करा. त्यांना भेटा. त्या गोष्टी मिळवा.
3) काहीही झाले तरी आपला यशाचा मार्ग सोडू नका. संकटे आली, अडचणी आल्या, विरोध झाला, अपमान झाला, कोणी नावे ठेवली, पाय ओढले, थट्टा मस्करी केली, अडवले, थांबवले, काहीही होवो. चांगल्या कामात निर्लज्ज व्हा. मान, सन्मान, इगो, मोठेपणा, अहंकार सर्व सोडा. फक्त धेय्य गाठणे लक्षात ठेवा. शेंडी तुटो वा पारंबी..ध्येय गाठायचे म्हणजे गाठायचे !!
4) कोणावर सर्वस्वी अवलंबून राहू नका. स्वतः करा.
5) मी गरीब आहे. पैसा नाही. हे नाही . ते नाही. म्हणत जगासमोर गेला तर लोक मदत करतच नाहीत पण मजबुरीचा फायदा घेतात.
स्वतःला मजबुत करा. मजबुर नाही
6) सर्वांशी चांगले संबंध ठेवा. तुम्ही ज्या संघटनेत, पक्षात, जातीत, प्रदेशात आहात तेथेच तुमचे जास्त शञू असतात, हे लोक आतुन गेम करतात. आणि कधीकधी बाहेरचे आणि ज्यांना आपण शञू मानतो ते लोक अचानक मदत करतात. यामुळे शञू कोणाला मानू नका. जे विचार पटत नाहीत ते बाजूला ठेवून जे पटतात ते घेऊन मैञी करा.
मोठे पुढारी, नेते, संघटनेचे वरीष्ठ लोक असेच वागतात आणि यशस्वी होतात.
7) कोणाची जातपात पाहू नका. कतृत्ववान मग तो कोणीही असेल त्याला जवळ करा. आपले माना.
८) जो तुम्हाला चांगले सांगतो, तुमच्या भल्याचा विचार करतो अशा व्यक्तीला आपले गुरू माना. मग तो वयाने लहान असो वा मोठा याचा विचार करू नका. अशा चांगल्या व्यक्तीने अपमान केला. रागावली. लाथाडले तरी त्याला सोडू नका.
कारण मोठेपणा देऊन लुबाडणारे अनेक आहेत पण तुम्हाला मार्ग दाखवणारे फार कमी असतात.
हजार चांदण्या शोधण्यापेक्षा एकच चंद्र शोधा. आणि हजार चंद्र शोधण्यापेक्षा एकच सुर्य जवळ ठेवा.
9) प्रत्येक गोष्टीचा तीन बाजुने विचार करा
१. ही गोष्ट माझ्या हिताची आहे का ?
२. हे सांगणाऱ्याचा काही स्वार्थ नाही ना ?
३. हे असच का ?
या तीन बाजूने विचार करा. आणि वाटले की समोरची व्यक्ती माझ्या भल्याचा विचार करते. यात त्याचा स्वार्थ नाही आणि यात माझा फायदा आहे तरच ती गोष्ट डोळे झाकुन करा.
10 ) पाय जमिनीवर ठेवा. माणसाशी माणूस म्हणून नाते जोडा. यश तुमच्या पायात लोळण घेईल
*वैयक्तिक जीवनात कसे वागावे ??
१) सकाळी सुर्योदयापुर्वीच उठा म्हणजे उठाच..
२) रोज थोडा का होईना व्यायाम कराच
३) अंघोळ शक्यतो थंड पाण्याने करा
४) ज्यांना आदर्श मानता त्यांचे दर्शन घ्या
उदा. देव, महामानव, आईवडील इत्यादी
५) नाष्टा, जेवण घरीच करा. हाँटेलमधील, टपरीवरील काहीही खाऊ नका. पिऊ नका. गरज असेल तर फळे खा.
६) प्रसन्न मनाने घराबाहेर पडा. प्रसन्न मनानेच काम करा
७) सहकारी व हाताखाली काम करणाऱ्यांशी सन्मानाने वागा
८) गाडी चालवताना, रस्त्याने चालताना मोबाईलचा वापर करू नका. कानात हेडफोन एका जागी उभे असतानाच घाला.
९) फेसबुक, whatsapp, यांचा वापर मर्यादित करा. फायद्यासाठी करा. Timepass करायला आयुष्य पडले आहे.
आता करिअर कडे लक्ष द्या .
१०) आई वडील आणि शिक्षकांचा कधीच अपमान, थट्टा करू नका.
११) दारू पिण्यापुरते जवळ येणाऱ्या मिञांना मोकळ्या बाटलीसारखे दुर फेका
१२) मयत, दहावा, तेरावा आणि लग्न एवढ्यापुरतेच भेटणार्या आणि संकटाच्या वेळी दुर जाणाऱ्या पाहूण्यांना, मिञांना पायाजवळही उभे करू नका.
१३) कोणतेही व्यसन करू नका. असेल तर सोडा आणि नसेल तर त्या वाटेला जाऊ नका.
जे लोक तुम्हाला व्यसन करायला लावतात ते तुमचे मिञ असू शकत नाहीत
१४) विद्यार्थ्यांनी रोज वेळेवर ,अभ्यास करावा. जे विद्यार्थी नाहीत त्यांनीही रोज वाचन करावे
१५) टी.व्ही. व चिञपटात चांगले ते पहावे.
१६) कोणाशी कोणताही वाद घालू नका. नाही पटत तर सोडून द्या पण फालतू वेळ घालवू नका
१७) शक्यतो मांसाहार टाळा, घरची भाजी भाकरी अमृत आहे.
१९) आजारपणात मेडिकल पेक्षा आयुर्वेदीय उपचार करा
२०) शक्य झाल्यास रोज प्राणायाम, सुर्यनमस्कार घाला
२१) झोपताना लवकर झोपा. लवकर उठा
२२) वाईट गोष्टी टाळा. चांगल्या स्विकारा.
अपयश टाळा. यश स्विकारा. विचार करा...पटले तर कृती करा..

Wednesday, June 10, 2015

सूर्य नमस्कार – समग्र व्यक्तित्व का परिष्कार

सूर्य नमस्कार – समग्र व्यक्तित्व का परिष्कार


सूर्य नमस्कार अर्थात प्राणों का संवर्धन, सूर्य में निहित अनुशासन व स्वर्णिम ऊर्जा से अपने समग्र व्यक्तित्व को प्रखर करना | सूर्य नमस्कार के अभ्यास से बुध्दि, धैर्य, शौर्य और बल की प्राप्ति होती है तथा मानसिक एकाग्रता, आत्मविश्वास एवं मेघा भी बढती है । यह संजीवनी की तरह दिव्य औषधि है जो मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। उत्साह व स्फूर्ति उत्पन्न करते हुए उसकी कार्यक्षमताओं में वृध्दि करती है।
सूर्य नमस्कार कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं है यह अपने आप में स्वतंत्र है तथा व्यायामों और आसनों की एक भावमय श्रंखला है। आगामी समय युवा वर्ग का है एवं युवाओं के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने हेतु सूर्य नमस्कार का अभ्यास व उसमें निहित भावों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए | इसके माध्यम से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक क्षमता बढ़ती है जिसके कारण देश और प्रदेश की प्रगति को नूतन आयाम मिलेंगे। आज के युग में जहां जीवन में आधुनिकतम सुविधाएं बढ़ी हैं, वहीं व्यक्ति के जीवन में शारीरिक- मानसिक कष्ट, अशांति और आत्मिक सूनापन भी है । योग के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर पाता है और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ होकर, अपने उत्तरदायित्व कुशलता से निभा पाता है। सूर्य नमस्कार, भारतीय योग संस्कृति का अद्भुत उपहार है। यह विभिन्न आसनों और व्यायाम का समन्वय है जिससे शरीर के सभी अंगों-उपांगों का पूरा व्यायाम हो जाता है। शरीर का पूरा शुध्दिकरण होता है और सूर्य की स्वर्णिम ऊर्जा का संचार सम्पूर्ण शरीर पर होता है|

सूर्य नमस्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया व भाव-
सरल उपासना और सरल, सहज सन्तुलित व्यायाम यह सूर्य नमस्कारों की विशेषता है। यह व्यायाम सात आसनों का समुच्चय है-
1. प्रार्थना की मुद्रा (खड़े होकर नमस्कार की मुद्रा)
2. हस्त उत्तानासन
3. पादहस्तासन (हस्तपादासन)
4. अश्व संचालनासन
5. पर्वतासन
6. अष्टांग नमस्कार
7. भुजंगासन
सूर्य नमस्कार में निहित मन्त्रों, भावों , नियम, श्वसन एवं सहज अभ्यास के साथ सूर्य नमस्कार करने से दीर्घायु व आरोग्य का अनुभव व प्राप्ति होती है।
सर्व प्रथम सूर्य देवता (सविता देवता का आवाहन करते है, भाव भरा नमस्कार करते है )

मंत्र-
ध्येय: सदा सवितृ-मण्डल-मध्यवर्ती।
नारायण: सरसिजाऽसन सन्निविष्ट:॥
केयूरवान् मकर-कुण्डलवान किरीट।
हारी हिरण्यमय वपुर्धृत शंख-चक्र:॥
अर्थ-
सौर-मण्डल के मध्य में, कमल के आसन पर विराजमान (सूर्य) नारायण जो बाजूबंद, मकर की आकृति के कुण्डल, मुकुट, शंख, चक्र धारण किये हुए तथा स्वर्ण आभायुक्त शरीर वाले हैं, का सदैव ध्यान करते हैं।

सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना है। सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में इन्हीं 12 स्थितियों को क्रम से दो बार दुहाराया जाता है।
12 स्थितियों में से प्रत्येक के साथ एक मंत्र जुड़ा है। मंत्र के दुहराने व निहित भावों का अनुभव करने पर मन पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है। सुनाई देने वाली अथवा न सुनाई देने वाली ध्वनि-तरंगों के द्वारा मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ने के कारण ऐसा होता है।

स्थिति अभ्यास 1 : प्रार्थना की मुद्रा
विधि : प्रार्थना की मुद्रा में पैर के दोनों पंजों को मिलाकर नमस्कार की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाइये। पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये ।
श्वास : सामान्य । एकाग्रता : अनाहत चक्र पर ।
मंत्र : ऊँ मित्राय नम: ।
लाभ : व्यायाम की तैयारी के रूप में एकाग्रता, स्थिरता व शांति प्रदान है।

स्थिति अभ्यास 2 : हस्त उत्तानासन
विधि : दोनों हाथों(भुजाओं) को सिर के ऊपर उठाइये, दोनों हात सीधे होंगे। कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये। सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाइये।
श्वास : भुजाओं को उठाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता :विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र : ऊँ रवये नम: | (ॐ रविये नम:)
लाभ :आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है और पाचन को सुधारता है। इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।

स्थिति अभ्यास 3 : पादहस्तासन
विधि : सामने दोनों हाथो को यथा संभव जितना हो सके उतना सामने की ओर झुकाईये एवं प्रयास करें की अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के पंजों के बगल में स्पर्श कर लें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश करें अत्यधिक जोर न लगायें। पैरों को सीधा रखें |
श्वास : श्वास लीजिये एवं सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़िये।
अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये।
एकाग्रता : स्वाधिष्ठान चक्र पर।
मंत्र : ऊँ सूर्याय नम:
लाभ : पेट व आमाशय की समस्याओं को दूर करता है ,नष्ट करता है। आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है। कब्ज को हटाने में सहायक है। रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त-संचार में लाभ प्रदान करता है।

स्थिति अभ्यास 4 : अश्व संचालन आसन
विधि : बायें पैर को जितना सम्भव हो सके पीछे तक लेजाईये । इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये, लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे। भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें। इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा। अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाइये, कमर को धनुषाकार बनाने का प्रयास और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये।
श्वास : बाएं पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता : आज्ञा चक्र पर।
मंत्र : ऊँ भानवे नम:
लाभ : आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्य-प्रणाली को सुधारता है। पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है मजबूती मिलती है ।

स्थिति अभ्यास 5 : पर्वतासन
विधि : दायें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये। नितम्बों को ऊपर उठाइये और सिर को भुजाओं के बीच में लाइये। अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें। इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये।
श्वास : दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये।
एकाग्रता : विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र: ऊँ खगाय नम:
लाभ : भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।
अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है। रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है।

स्थिति अभ्यास 6 : अष्टांग नमस्कार
विधि : शरीर को भूमि पर इस प्रकार झुकाइये कि अन्तिम स्थिति में दोनों पैरों की अंगुलियां, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ तथा ठुड्डी भूमि का स्पर्श करे। नितम्ब व आमाशय जमीन से थोड़े ऊपर उठे रहें।
श्वास : स्थिति 5 में छोड़ी हुई श्वास को बाहर ही रोके रखिये।
एकाग्रता: मणिपुर चक्र पर।
मंत्र: ऊँ पूष्णे नम:
लाभ: पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।

स्थिति अभ्यास 7 : भुजंगासन
विधि: हाथों को सीधे करते हुए शरीर को कमर से ऊपर उठाइये। सिर को पीछे की ओर झुकाइये। यह अवस्था भुजंगासन की अन्तिम स्थिति के समान ही है।
श्वास: कमर को धनुषाकार बनाकर उठते हुए श्वास लीजिये।
एकाग्रता: स्वाधिष्ठान चक्र पर।
मंत्र : ऊँ हिरण्यगर्भाय नम:
लाभ: आमाशय पर दबाव पड़ता है। यह आमाशय के अंगों में जमे हुए रक्त को हटाकर ताजा रक्त संचार करता है। बदहजमी व कब्ज सहित यह आसन पेट के सभी रोगों में उपयोगी है। रीढ़ को धनुषाकार बनाने से उसमें व उसकी मांसपेशियों में लचीलापन आता है एवं रीढ़ के प्रमुख स्नायुओं को नयी शक्ति मिलती है।

स्थिति अभ्यास 8 : पर्वतासन
यह स्थिति 5 की आवृत्ति है।
दायें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये। नितम्बों को ऊपर उठाइये और सिर को भुजाओं के बीच में लाइये। अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें। इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये।
श्वास : दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये।
एकाग्रता : विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र : ऊँ मरीचये नम:
लाभ : भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।
अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है। रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है।

स्थिति अभ्यास 9 : अश्व संचालनासन
यह स्थिति 4 की आवृत्ति है।
विधि : बायें पैर को जितना सम्भव हो सके पीछे फैलाइये। इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये, लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे। भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें। इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा। अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाइये, कमर को धनुषाकार बनाइये और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये।
श्वास : बाएं पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता : आज्ञा चक्र पर।
मंत्र : ऊँ आदित्याय नम:
लाभ : आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्य-प्रणाली को सुधारता है।
पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है।

स्थिति अभ्यास 10 : पादहस्तासन
यह स्थिति 3 की आवृत्ति है।
सामने की ओर झुकते जाइये जब तक कि अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के सामने तथा बगल में स्पर्श न कर लें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश कीजिये। जोर न लगायें। पैरों को सीधे रखिये।
श्वास :सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़िये।
अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये।
एकाग्रता : स्वाधिष्ठान चक्र पर।
मंत्र : ऊँ सवित्रे नम:
लाभ : पेट व आमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है। आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है। कब्ज को हटाने में सहायक है। रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त-संचार में तेजी लाता है। रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है।

स्थिति अभ्यास 11 : हस्त उत्तानासन
यह स्थिति 2 की आवृत्ति है।
विधि : दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाइये। कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये। सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाइये।
श्वास : भुजाओं को उठाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता : विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र : ऊँ अर्काय नम:
लाभ : आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता और पाचन को सुधारता है। इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।

स्थिति अभ्यास 12 : प्रार्थना की मुद्रा (नमस्कार मुद्रा)
यह अन्तिम स्थिति प्रथम स्थिति की आवृत्ति है।
विधि : प्रार्थना की मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाइये। पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये।
श्वास : सामान्य।
एकाग्रता : अनाहत चक्र पर।
मंत्र : ऊँ भास्कराय नम:
लाभ : पुन: एकाग्र एवं शान्त अवस्था में लाता है|

-------मंत्र व निहित भाव -------
1. ऊँ मित्राय नम: - हित करने वाला मित्र
2. ऊँ रवये नम: - शब्द का उत्पति स्रोत
3. ऊँ सूर्याय नम: - उत्पादक, संचालक
4. ऊँ भानवे नम: - ओज, तेज
5. ऊँ खगाय नम: - आकाश में स्थित#विचरण करने वाला
6. ऊँ पूष्णे नम: - पुष्टि देने वाला
7. ऊँ हिरण्यगर्भाय नम: - बलदायक
8. ऊँ मरीचये नम: - व्याधिहारक#किरणों से युक्त
9. ऊँ आदित्याय नम: - सूर्य
10 ऊँ सवित्रे नम: - सृष्टि उत्पादनकर्ता
11. ऊँ अर्काय नम: - पूजनीय
12. ऊँ भास्कराय नम: - कीर्तिदायक

आदित्यस्य नमस्कारान्, ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयु: प्रज्ञा बलंवीर्यम् तेजस तेषाम च जायते॥
अर्थ-
जो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, वे आयु, प्रज्ञा (अच्छी बुध्दि), बल, वीर्य और तेज को प्राप्त करते हैं।

नोट -
o गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोग बिना योग चिकित्सकीय परामर्श के अभ्यास ना करें।

- अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस(२१ जून २०१५)
Video Link - https://www.youtube.com/watch?v=2bxfyE9GTWI

Thursday, May 14, 2015

सुखाची गुरुकिल्ली

१. रोज किमान सात तास झोपा
२. जगण्यासाठी आवश्यक तीन गोष्टी ---स्फूर्ती , उत्साह ,दिलदारी
३. रोज सुहास्य वदनाने अर्धा तास मोकळ्या हवेत फिरा .
४. रोज किमान पंधरा मिनिटे एका जागी शांत ,स्तब्ध राहा .
५. चांगली पुस्तके वाचा . मनन करा . त्यातून जीवनाला ऊर्जा मिळेल .
६. रोज मुबलक सात -आठ ग्लास पाणी प्या .पाणी म्हणजे जीवन !
७. जागेपणी स्वप्ने पहा . त्यांचा ध्यास घ्या . स्वप्नांच्या पूर्तीसाठी झटून प्रयत्न करा .
८. हसून , खेळून, मिळून- मिसळून आनंदी राहा . मन करारे प्रसन्ना ,सर्व सिद्धींचे कारण !
९. रोज ध्यान धारणा करा . प्रार्थना करा . सुख शांति समाधानाचा अनुभव घ्या .
१०. सकाळचा नास्ता भरपूर घ्या , दुपारचे जेवण मध्यम घ्या , रात्रीचे जेवण कमी घ्या .
११. खाण्यामध्ये फळे , फळभाज्या , पालेभाज्या यांचा मुबलक वापर करा .
१२. रोज थोडेतरी खेळा . मनाला ,शरीराला विरंगुळा मिळेल .
१३. स्वतः हसा आणी दुसऱ्यांना हसवा . हसण्याने मन प्रसन्न होते .
१४. दुसऱ्यांची निंदा , कुचेष्टा करू नका . त्याऐवजी चांगल्या गोष्टीत वेळ सत्कारणी लावा .
१५. ज्या गोष्टी आपल्या हातात नाहीत ,ज्या परिस्थितीस तुम्ही बदलू शकत नाही त्याबद्दल दुखः करू नका .
१६. आपले वर्तमान कसे सुधारता येईल ते पहा . वर्तमानातले चांगले कार्य भविष्य घडविते .
१७. स्वतःचा फार गंभीरपणे विचार करू नका . इतरांना तुमची काही पडलेली नाही .
१८. हे जीवन फार छोटे आहे . दुसऱ्याचा हेवा , मत्सर , द्वेष करण्यात ते वाया घालवू नका .
१९. भूतकाळातील अप्रिय घटना पुन्हा पुन्हा आठवून वर्तमान बिघडवू नका . त्या विसरून जा .
२०. जीवन ही पाठशाळा आहे . त्यातून धडे घेवून शहाणे व्हा .
२१. दुसऱ्याशी आपली तुलना करू नका . त्याचे वरवरचे सुखविलास पाहून मत्सरग्रस्त होवू नका .
२२. दुखाःचे , तणावाचे दिवस संपतील . परिस्थिती कायम बदलत राहते . धीर धरा .
२३. तुमच्या आयुष्यातील सर्वोत्तम काळ अजून यावयाचा आहे . हे मनी धरा आणि प्रसन्न रहा .
२४. तुमचे कुटुंब तुमचा सर्वात मोठा आधार स्तंभ आहे . त्यांना प्राधान्य द्या .
२५. कोणताही प्रसंग येवो ,धैर्य सोडू नका . धैर्याने जगास सामोरे जा .
२६. जीवन हा हार -जीतीचा खेळ आहे . जिंकण्याबरोबर हरणेही स्वीकारा .
२७. वृध्द माणसे आणि छोटी मुले यांच्या समवेत दिवसातील थोडातरी वेळ नियमित घालवा .
२८. वृद्धांना जगण्याची उमेद द्या आणि छोट्यांकडून उर्जा घ्या .
२९. कोणत्याही परिस्थितीत सुखी आणि आनंदी रहायला शिका .
३०. हे सुंदर विचार लोकांना कळवा .

Saturday, May 9, 2015

5 Minute Morning Exercise

This 5 Minute Morning Exercise Will Revitalize Your Life

Making exercise a priority in the morning can be challenging. I think most people would agree that exercising in the morning is a good thing, but the reality is time always seems to get in the way. There are many benefits that come from a morning exercise routine such as; increased blood flow, more energy and fewer aches and pains.
So what’s the solution to realize these benefits and many more? It’s a yoga sequence call Sun Salutation (Surya Namaskara). Sun Salutation is a 5-minute morning exercise that will revitalize your life and send you offc to tackle your day with a sense of calm and purpose.
Sun Salutation (Surya Namaskara)
The sun salutation is a sequence of postures, each with its meaning and function. It is a daily practice intended for dawn and/or sunset and done in the direction of the sun. Ideally, you would practice Sun Salutation outside to be in nature when honoring the sun and sharing your gratitude for its energy, but it isn’t a requirement.

The Benefits of doing Sun Salutation Every Morning

A regular and faithful practice of Sun Salutation in the mornings can benefit you in the following ways. It:
1.                   Strengthens the entire digestive system.
2.                   Invigorates and restores the nervous system.
3.                   Energizes the heart and regulates blood pressure and heart palpitations.
4.                   Promotes healthy lungs and breath.
5.                   Stimulates glandular activity.
6.                   Strengthens the muscles in your upper and lower body including your abdomen and back.
7.                   Reduces excess fat on the body.
8.                   Improves kidney function.
9.                   Encourages proper posture.
10.              Brings clarity to your mind.
Basically, a morning ritual that includes Sun Salutation will benefit all your vital organs, muscles, your mind and it will provide shape and muscle to your body in a healthy, natural way.

Practicing Sun Salutation

The good thing about Sun Salutation is it is perfect for all levels. The series is made up of eight beginning yoga poses that take you through twelve stations. It can take you anywhere from 5 minutes to longer, depending on how many sequences you choose to do.
Make sure you are in comfortable clothing and barefoot is best. The below detailed instructions come courtesy of The Yoga Journal.
1.                   To begin, stand in Tadasana (Mountain Pose). Distribute your weight evenly over both feet. Establish a slow, steady rhythm for your breath. Find your center.
2.     Next, inhale and stretch your arms out to the side and overhead into Urdhva Hastasana (Upward Salute). Reach your heart and arms to the heavens, sending your greeting to the sun.
3.     As you exhale, hollow out your belly and fold into Uttanasana (Standing Forward Bend), connecting down into the earth. Keep your legs firmly engaged.
4.     Inhale and lengthen your spine forward into Ardha Uttanasana (Half Standing Forward Bend). In this pose, the gaze is lifted, the spine is extended, and the fingertips can stay on the floor or rise to the shins.
5.     Exhale and step or lightly hop your feet back behind you into Plank Pose. Your wrists should be flat on the floor, shoulder-distance apart, and your feet should be at hip distance. Take a full breath in as you lengthen through your spine.
6.     Exhale and lower into Chaturanga Dandasana (Four-Limbed Staff Pose), keeping your legs straight and pushing back into your heels or bringing your knees to the floor. Build heat in the center of your body as you hold this challenging posture.
7.     Inhale and carve your chest forward into Urdhva Mukha Svanasana (Upward-Facing Dog), directing that energy out from your heart. Pull your shoulders back and open your collarbones. Engage your legs but relax your gluteal muscles.
8.     Exhale and roll over the toes, coming into Adho Mukha Svanasana (Downward-Facing Dog Pose). Ground down through your hands and feet as you lengthen your spine. Remain here for five breaths.
9.     On your fifth exhale, bend your knees and look between your hands. Then inhale and step or lightly hop your feet between your hands, returning to Ardha Uttanasana.
10.              Exhale back to Uttanasana, surrendering into the fold.
11.              Inhale, reaching your arms out wide to your sides and coming to stand through a flat back. Feel a renewed sense of energy as you draw your arms overhead into Urdhva Hastasana.
12.              Exhale and return to Tadasana, your home base. Remain here for a few breaths, feeling the movement of energy through your body, or continue on to your next salute.
Note: This is only a half the sequence. Repeat it switching legs. If the flow between poses is challenging, you might want to begin by practicing the poses individually until you are sure you are in good form.
Realizing the benefits of practicing Sun Salutation requires intention and regularity. Of course, this is true of any yoga practice. Ideally, you will want to practice it every day, but if it is a challenge try for every other day.

The ultimate goal is to develop a regular practice and when you do it won’t be long until your day feels incomplete without your morning ritual.

Friday, February 13, 2015

6 Ways to Create Good Karma


Karma, put simply, means “what goes around comes around.” If you give out good energy, it will come back full circle, and the same goes for negative energy. Many people live life on autopilot, not aware that their thoughts influence their realities. Much of the unrest we see in the world today is a direct result of people’s thoughts. All of the wars, bickering, complaining, and general unhappiness begins with a thought carried out with action.
To counter all this negative energy, we can collectively create better karma so that good things and people start to appear in our lives, which raises the vibrational energy of the whole planet. Creating good karma is as simple as trying your best to be a good person. If this still seems vague, try to remember the following tips for directing positive karma into your life.

Here are 6 Ways to Create Good Karma

Tell the Truth

Anytime you tell a lie, even if it’s a small one, you set yourself up for deceit and hidden agendas from other people. Also, others won’t trust you as much once they find out you have been lying. The old saying “honesty is the best policy” still holds true today – telling the truth allows people into your life who also tell the truth. Not only will you attract trustworthy people into your life, but you will feel better knowing that you’re living authentically without having to cover up lies with more lies. Lying becomes exhausting after a while anyway, so you could even argue that it’s better for your health to tell the truth from the get-go.

Live Purposefully

Whatever you do in life, do it fully and set clear intentions for what you want. Don’t be afraid to go after your goals, and try to help others along your journey to fulfillment as well. Put out your best effort and true self into the world, and the universe will send you experiences and people to match your energy.

Help People

Expanding upon the last point, helping others creates good karma because others will be more likely to help you should you need it. A life lived for others is never a life wasted, so use your unique talents and traits to help others along this crazy rollercoaster of life. They will appreciate your help, and you will make an ever-lasting mark on their life. Not to mention, when you help others, you also help yourself. If you have been feeling a bit empty or lost lately, just simply offer your help to someone. Everyone needs a purpose in life, and helping people should always be a part of that purpose.

Meditate

When everything else fails, just go within and quiet your mind. Pay attention to the thoughts in your brain, and make sure they stay positive so you can continue to attract positivity. When your thoughts become frazzled, you’re more prone to bad karma because you haven’t cleared a space in your head and heart for the universal energy to flow through. It’s important to connect with your highest self often and clear your head so you can put your best self forward into the world and exude good energy.

Practice Compassion and Kindness

If you want compassion and kindness from others, you have to give it as well. Life works in cycles of giving and receiving, and the more you give, the more you will receive. Everyone fights tough battles on a daily basis, so remember to show kindness to them and empathize with their struggles. Try to help as many people as you can by spreading kindness – the world can never have enough kindness.

Remember the Big Picture

While life may seem like a series of uncontrollable, atrocious events on the surface, remember to look beyond the illusions and remind yourself what you’re really here for. We all came here to heal past karma and become the best versions of ourselves, so keep this in mind each day when you wake up. Will your thoughts and actions today represent someone who wants good or bad things to happen? You can invite positive events and people into your life by remembering that you came from a place of pure love, and embodying that energy once again.
This world could use a lot more good energy, and it all begins with you. You can reflect this energy onto others, and therefore change the world. Stop feeling so small when you have the whole universe inside of you!