Wednesday, June 10, 2015

सूर्य नमस्कार – समग्र व्यक्तित्व का परिष्कार

सूर्य नमस्कार – समग्र व्यक्तित्व का परिष्कार


सूर्य नमस्कार अर्थात प्राणों का संवर्धन, सूर्य में निहित अनुशासन व स्वर्णिम ऊर्जा से अपने समग्र व्यक्तित्व को प्रखर करना | सूर्य नमस्कार के अभ्यास से बुध्दि, धैर्य, शौर्य और बल की प्राप्ति होती है तथा मानसिक एकाग्रता, आत्मविश्वास एवं मेघा भी बढती है । यह संजीवनी की तरह दिव्य औषधि है जो मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। उत्साह व स्फूर्ति उत्पन्न करते हुए उसकी कार्यक्षमताओं में वृध्दि करती है।
सूर्य नमस्कार कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं है यह अपने आप में स्वतंत्र है तथा व्यायामों और आसनों की एक भावमय श्रंखला है। आगामी समय युवा वर्ग का है एवं युवाओं के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने हेतु सूर्य नमस्कार का अभ्यास व उसमें निहित भावों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए | इसके माध्यम से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक क्षमता बढ़ती है जिसके कारण देश और प्रदेश की प्रगति को नूतन आयाम मिलेंगे। आज के युग में जहां जीवन में आधुनिकतम सुविधाएं बढ़ी हैं, वहीं व्यक्ति के जीवन में शारीरिक- मानसिक कष्ट, अशांति और आत्मिक सूनापन भी है । योग के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर पाता है और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ होकर, अपने उत्तरदायित्व कुशलता से निभा पाता है। सूर्य नमस्कार, भारतीय योग संस्कृति का अद्भुत उपहार है। यह विभिन्न आसनों और व्यायाम का समन्वय है जिससे शरीर के सभी अंगों-उपांगों का पूरा व्यायाम हो जाता है। शरीर का पूरा शुध्दिकरण होता है और सूर्य की स्वर्णिम ऊर्जा का संचार सम्पूर्ण शरीर पर होता है|

सूर्य नमस्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया व भाव-
सरल उपासना और सरल, सहज सन्तुलित व्यायाम यह सूर्य नमस्कारों की विशेषता है। यह व्यायाम सात आसनों का समुच्चय है-
1. प्रार्थना की मुद्रा (खड़े होकर नमस्कार की मुद्रा)
2. हस्त उत्तानासन
3. पादहस्तासन (हस्तपादासन)
4. अश्व संचालनासन
5. पर्वतासन
6. अष्टांग नमस्कार
7. भुजंगासन
सूर्य नमस्कार में निहित मन्त्रों, भावों , नियम, श्वसन एवं सहज अभ्यास के साथ सूर्य नमस्कार करने से दीर्घायु व आरोग्य का अनुभव व प्राप्ति होती है।
सर्व प्रथम सूर्य देवता (सविता देवता का आवाहन करते है, भाव भरा नमस्कार करते है )

मंत्र-
ध्येय: सदा सवितृ-मण्डल-मध्यवर्ती।
नारायण: सरसिजाऽसन सन्निविष्ट:॥
केयूरवान् मकर-कुण्डलवान किरीट।
हारी हिरण्यमय वपुर्धृत शंख-चक्र:॥
अर्थ-
सौर-मण्डल के मध्य में, कमल के आसन पर विराजमान (सूर्य) नारायण जो बाजूबंद, मकर की आकृति के कुण्डल, मुकुट, शंख, चक्र धारण किये हुए तथा स्वर्ण आभायुक्त शरीर वाले हैं, का सदैव ध्यान करते हैं।

सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना है। सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में इन्हीं 12 स्थितियों को क्रम से दो बार दुहाराया जाता है।
12 स्थितियों में से प्रत्येक के साथ एक मंत्र जुड़ा है। मंत्र के दुहराने व निहित भावों का अनुभव करने पर मन पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है। सुनाई देने वाली अथवा न सुनाई देने वाली ध्वनि-तरंगों के द्वारा मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ने के कारण ऐसा होता है।

स्थिति अभ्यास 1 : प्रार्थना की मुद्रा
विधि : प्रार्थना की मुद्रा में पैर के दोनों पंजों को मिलाकर नमस्कार की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाइये। पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये ।
श्वास : सामान्य । एकाग्रता : अनाहत चक्र पर ।
मंत्र : ऊँ मित्राय नम: ।
लाभ : व्यायाम की तैयारी के रूप में एकाग्रता, स्थिरता व शांति प्रदान है।

स्थिति अभ्यास 2 : हस्त उत्तानासन
विधि : दोनों हाथों(भुजाओं) को सिर के ऊपर उठाइये, दोनों हात सीधे होंगे। कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये। सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाइये।
श्वास : भुजाओं को उठाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता :विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र : ऊँ रवये नम: | (ॐ रविये नम:)
लाभ :आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है और पाचन को सुधारता है। इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।

स्थिति अभ्यास 3 : पादहस्तासन
विधि : सामने दोनों हाथो को यथा संभव जितना हो सके उतना सामने की ओर झुकाईये एवं प्रयास करें की अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के पंजों के बगल में स्पर्श कर लें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश करें अत्यधिक जोर न लगायें। पैरों को सीधा रखें |
श्वास : श्वास लीजिये एवं सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़िये।
अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये।
एकाग्रता : स्वाधिष्ठान चक्र पर।
मंत्र : ऊँ सूर्याय नम:
लाभ : पेट व आमाशय की समस्याओं को दूर करता है ,नष्ट करता है। आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है। कब्ज को हटाने में सहायक है। रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त-संचार में लाभ प्रदान करता है।

स्थिति अभ्यास 4 : अश्व संचालन आसन
विधि : बायें पैर को जितना सम्भव हो सके पीछे तक लेजाईये । इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये, लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे। भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें। इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा। अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाइये, कमर को धनुषाकार बनाने का प्रयास और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये।
श्वास : बाएं पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता : आज्ञा चक्र पर।
मंत्र : ऊँ भानवे नम:
लाभ : आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्य-प्रणाली को सुधारता है। पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है मजबूती मिलती है ।

स्थिति अभ्यास 5 : पर्वतासन
विधि : दायें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये। नितम्बों को ऊपर उठाइये और सिर को भुजाओं के बीच में लाइये। अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें। इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये।
श्वास : दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये।
एकाग्रता : विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र: ऊँ खगाय नम:
लाभ : भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।
अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है। रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है।

स्थिति अभ्यास 6 : अष्टांग नमस्कार
विधि : शरीर को भूमि पर इस प्रकार झुकाइये कि अन्तिम स्थिति में दोनों पैरों की अंगुलियां, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ तथा ठुड्डी भूमि का स्पर्श करे। नितम्ब व आमाशय जमीन से थोड़े ऊपर उठे रहें।
श्वास : स्थिति 5 में छोड़ी हुई श्वास को बाहर ही रोके रखिये।
एकाग्रता: मणिपुर चक्र पर।
मंत्र: ऊँ पूष्णे नम:
लाभ: पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।

स्थिति अभ्यास 7 : भुजंगासन
विधि: हाथों को सीधे करते हुए शरीर को कमर से ऊपर उठाइये। सिर को पीछे की ओर झुकाइये। यह अवस्था भुजंगासन की अन्तिम स्थिति के समान ही है।
श्वास: कमर को धनुषाकार बनाकर उठते हुए श्वास लीजिये।
एकाग्रता: स्वाधिष्ठान चक्र पर।
मंत्र : ऊँ हिरण्यगर्भाय नम:
लाभ: आमाशय पर दबाव पड़ता है। यह आमाशय के अंगों में जमे हुए रक्त को हटाकर ताजा रक्त संचार करता है। बदहजमी व कब्ज सहित यह आसन पेट के सभी रोगों में उपयोगी है। रीढ़ को धनुषाकार बनाने से उसमें व उसकी मांसपेशियों में लचीलापन आता है एवं रीढ़ के प्रमुख स्नायुओं को नयी शक्ति मिलती है।

स्थिति अभ्यास 8 : पर्वतासन
यह स्थिति 5 की आवृत्ति है।
दायें पैर को सीधा करके बायें पंजे के पास रखिये। नितम्बों को ऊपर उठाइये और सिर को भुजाओं के बीच में लाइये। अन्तिम स्थिति में पैर और भुजाएं सीधी रहें। इस स्थिति में एड़ियों को जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास कीजिये।
श्वास : दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये।
एकाग्रता : विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र : ऊँ मरीचये नम:
लाभ : भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।
अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है। रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है तथा उनमें ताजे रक्त का संचार करने में सहायक है।

स्थिति अभ्यास 9 : अश्व संचालनासन
यह स्थिति 4 की आवृत्ति है।
विधि : बायें पैर को जितना सम्भव हो सके पीछे फैलाइये। इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये, लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे। भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रहें। इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा। अंतिम स्थिति में सिर पीछे को उठाइये, कमर को धनुषाकार बनाइये और दृष्टि ऊपर की तरफ रखिये।
श्वास : बाएं पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता : आज्ञा चक्र पर।
मंत्र : ऊँ आदित्याय नम:
लाभ : आमाशय के अंगों की मालिश कर कार्य-प्रणाली को सुधारता है।
पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है।

स्थिति अभ्यास 10 : पादहस्तासन
यह स्थिति 3 की आवृत्ति है।
सामने की ओर झुकते जाइये जब तक कि अंगुलियां या हाथ जमीन को पैरों के सामने तथा बगल में स्पर्श न कर लें। मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश कीजिये। जोर न लगायें। पैरों को सीधे रखिये।
श्वास :सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़िये।
अधिक से अधिक सांस बाहर निकालने के लिए अन्तिम स्थिति में आमाशय को सिकोड़िये।
एकाग्रता : स्वाधिष्ठान चक्र पर।
मंत्र : ऊँ सवित्रे नम:
लाभ : पेट व आमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है। आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है। कब्ज को हटाने में सहायक है। रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त-संचार में तेजी लाता है। रीढ़ के स्नायुओं के दबाव को सामान्य बनाता है।

स्थिति अभ्यास 11 : हस्त उत्तानासन
यह स्थिति 2 की आवृत्ति है।
विधि : दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाइये। कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं में फासला रखिये। सिर और ऊपरी धड़ को थोड़ा सा पीछे झुकाइये।
श्वास : भुजाओं को उठाते समय श्वास लीजिये।
एकाग्रता : विशुध्दि चक्र पर।
मंत्र : ऊँ अर्काय नम:
लाभ : आमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता और पाचन को सुधारता है। इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।

स्थिति अभ्यास 12 : प्रार्थना की मुद्रा (नमस्कार मुद्रा)
यह अन्तिम स्थिति प्रथम स्थिति की आवृत्ति है।
विधि : प्रार्थना की मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाइये। पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दीजिये।
श्वास : सामान्य।
एकाग्रता : अनाहत चक्र पर।
मंत्र : ऊँ भास्कराय नम:
लाभ : पुन: एकाग्र एवं शान्त अवस्था में लाता है|

-------मंत्र व निहित भाव -------
1. ऊँ मित्राय नम: - हित करने वाला मित्र
2. ऊँ रवये नम: - शब्द का उत्पति स्रोत
3. ऊँ सूर्याय नम: - उत्पादक, संचालक
4. ऊँ भानवे नम: - ओज, तेज
5. ऊँ खगाय नम: - आकाश में स्थित#विचरण करने वाला
6. ऊँ पूष्णे नम: - पुष्टि देने वाला
7. ऊँ हिरण्यगर्भाय नम: - बलदायक
8. ऊँ मरीचये नम: - व्याधिहारक#किरणों से युक्त
9. ऊँ आदित्याय नम: - सूर्य
10 ऊँ सवित्रे नम: - सृष्टि उत्पादनकर्ता
11. ऊँ अर्काय नम: - पूजनीय
12. ऊँ भास्कराय नम: - कीर्तिदायक

आदित्यस्य नमस्कारान्, ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयु: प्रज्ञा बलंवीर्यम् तेजस तेषाम च जायते॥
अर्थ-
जो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, वे आयु, प्रज्ञा (अच्छी बुध्दि), बल, वीर्य और तेज को प्राप्त करते हैं।

नोट -
o गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोग बिना योग चिकित्सकीय परामर्श के अभ्यास ना करें।

- अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस(२१ जून २०१५)
Video Link - https://www.youtube.com/watch?v=2bxfyE9GTWI

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